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The KING and the PRINCE.


एक समय की बात है।
पूरी सृष्टि पर एक ही राजा का राज्य हुआ करता था।
उस राजा का एक पुत्र भी था,मगर आश्चर्य की बात ये है कि पूरी सृष्टि पर उस राजा और उसके पुत्र के सिवा कोई नहीं था,ना तो कोई रानी,ना कोई दरबारी ना ही कोई प्रजा ही थी।

ये बात बहुत रहस्यमय,आश्चर्यजनक किंतु सत्य थी।

पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ़ दो के अस्तित्व के सिवा कुछ ना होना अविश्वसनीय तो था किंतु इसी वजह से बहुत रोमांचक भी था।

राजा बहुत बुद्धिमान था।
अब जस पिता तस पुत्र,तो पुत्र भी राजा की तरह बुद्धिमान था।

उन दोनों में आपस में बहुत प्यार था।

स्वाभाविक था क्योंकि दोनों के सिवा कोई और था ही नहीं तो दोनों का सारा समय एक दूसरे के साथ हंसते-गाते,बातें करते व्यतीत होता था।

एक दिन पुत्र रोज़-रोज़ की उस दिनचर्या से ऊब गया और उसने राजा को कहा कि क्यूं ना आप मेरे खेलने के लिए इतने साधन बनाओ कि मैं सुबह से शाम तक खेलूं तो भी मेरा दिल न भरे।साथ ही कुछ साथी भी हों तो और अच्छा।

राजा ने कहा ठीक है,यहां आसमान पर इस घर में तो हमें शरीर की आवश्यकता नहीं,मगर तुम्हें अगर कहना ही है तो पृथ्वी पर रोज़ सुबह चले जाना शाम को लौट आना किन्तु ध्यान रहे,पृथ्वी पर प्रकृति के नियम कार्य करते है तो तुम्हें उन सीमित नियमों का पालन करना होगा।

पुत्र ने बेहद प्रसन्नता से कहा कि उसे मंज़ूर है।

राजकुमार के लिए राजा ने 5000 साल के एक बड़े दिन की रचना की,जिसमें2500 साल का था दिन और 2500 साल की रात।
क्यूंकी राजकुमार का वास्ता शरीर से नहीं पड़ा था तो उसे उस सांकेतिक दिन और रात के फर्क़ का पता था।

वो सब प्रजा जो बिना शरीर के उसके राज्य में निष्क्रिय पड़ी थी,उन सबको भी बारी-बारी धरती पर भेजने की योजना राजा ने रची।
राजा ने राजकुमार से कहा देखो मैंने तुम्हारे लिए ये 5000 साल का खेल तैयार किया है, तुम्हें ये कैसा लगा ?

तो राजकुमार ने उस खेल को समझने के लिए उसे बहुत बार देखा।
उसने पूछा कि खेल की शुरुआत में तो सब अच्छा -अच्छा है मगर बाद में ये दुख, तनाव और बुराइयां क्यूं हैं खेल में।

पिता ने राजकुमार को समझाया " ये खेल पृथ्वी पर खेला जाएगा और ये प्रकृति के द्वारा स्वचालित होता रहेगा,मैं बीज रूप से सब दूंगा,प्रकृति उसे बड़ा करेगी फिर उसको वक़्त पर विनाश कर फिर बीज प्राप्त करके सृष्टि सब कार्य चलाती रहेगी।

और तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

तब राजकुमार ने पूछा कि ये प्रकृति कैसे खुद से कार्य करेगी।

तो राजा ने कहा कि प्रकृति तीन शक्तियों द्वारा संचालित होगी।

एक शक्ति का कार्य होगा उत्पादन,
दूसरी शक्ति का कार्य होगा संचालन,
तीसरी शक्ति का कार्य होगा विस्थापन।

जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के नाम से जाना जाएगा।

राजा ने कहा " मेरे प्रिय पुत्र, अब क्यूं कि
तुम्हारे हिसाब से ये खेल मैंने रचा है इसलिए तुम्हें ही समय-समय पर ये तीनों पार्ट निभाने होंगे।

अब क्यूंकि प्रकृति के हिसाब से सुख के पीछे दुख,पवित्रता के पीछे अपवित्रता और ज्ञान के पीछे अज्ञान आएगा तो यही खेल खेलते तुम शाम को वापिस आ जाना।

इन 5000 वर्षों में तुम्हें 84 वस्त्र मिलेंगे जिन्हें तुम शरीर के रूप में धारण करोगे।

खेल प्रारंभ हुआ और राजकुमार धरती पर आ गया, जो पहला शरीर उसने धारण किया,उसका नाम श्रीकृष्ण पड़ा।
वहां उसे संगी साथी के रूप में अनेक लोग मिले।

राजकुमार का 5000 साल का दिन भी चार हिस्सों में था।
सुबह बनी 1250 वर्ष का सतयुग
दोपहर बनी 1250 बर्ष का त्रेतायुग
शाम बनी 1250 वर्ष का द्वापरयुग
और
रात बनी 1250 वर्ष का कलयुग।

धीरे-धीरे खेल खेलते समय बीतने लगा।

रात का समय भी ख़त्म होने को आ गया।

राजकुमार ने आख़री शरीर रूपी वस्त्र भी इस्तेमाल कर लिया था।
वो बहुत थक गया था ,काली घनघोर रात थी उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था।

उसने उड़ कर वापिस जाने की सोची मगर अपवित्रता ने उसके पंख काट दिए थे जिस वजह से न सिर्फ़ उसका आख़री वस्त्र बल्कि आत्मा भी मैली हो गयी थी।

वो घबरा कर अपने पिता को पुकारने लगा।

आसमान से उसका पिता राजा सब देख रहा था, वो समझ गया कि मुझे ही उसे लेने धरती पर जाना पड़ेगा।

वो धरती पर आया मगर राजकुमार अज्ञानता से ऐसा बेसुध था कि अपने पिता को भी पहचान नहीं पाया।

पिता ने अपने पुत्र को अपना परिचय देकर उसकी आत्मा को पवित्रता से धोना शुरू किया।

धीरे-धीरे राजकुमार की सारी स्मृति लौट आयी,राजा ने मुस्कुरा कर कहा कि पुत्र तुम्हारी ही सहमति से खेल रचा था कहो तो खेल आसान कर दें।

राजकुमार ने पिता की गोद में लेटे-लेटे कहा कि रहने दीजिए खेल में चुनोतियाँ और संघर्ष ना हो तो क्या मज़ा।
राजकुमार ने कहा कि चलिए घर चलते हैं,
तो राजा ने कहा तुम्हारी शक्ति वापिस लौट आयी मगर उनका क्या जो तुम्हारे साथ खेले हैं उन्हें भी तो पवित्र कर उनकी आत्मा को धोकर स्वच्छ बनाना है।

अब तुम ये सीख गए हो ये काम अब तुम्हारे ज़िम्मे है और ये कहकर कि मैं तुम्हारी सहायता के लिए आता रहूंगा,
राजा अपने वतन आकाश को चला गया।

अब राजकुमार की ज़िम्मेदारी बदल गई थी इसलिए उसके उस आख़िरी वस्त्र का नाम भी बदल गया।

कहानी यहां फिर शुरू होती है,

वो राजकुमार रोज़ सुबह इस धरती पर खेलने आता है, शाम को जब थक जाता है तो राजा रोज़ की तरह आकर उसे नहला-धुलाकर वापिस ले जाता है।

ये खेल अनवरत चलता रहता है।

उस राजा का नाम है *शिव*
और वो राजकुमार है *श्रीकृष्ण*।



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