बैठे बैठे सोच में पड़ गया और अचानक एक मन में ख्याल उठा की काश! मैं ईमानदार होता तो मेरे समाज व देश की ये हालत न होती। एक घटना याद आयी की मैंने आवासीय कालोनी में एक आवासीय प्लाट ख़रीदा। जिसके सामने ३० फुट चौड़ा रास्ता था। आस पास कुछ मकान बन चुके थे। मैंने भी नगर पालिका से अनुमति लिए बिना अर्थात बिना नक्शा पास कराय अपना मकान बनाना शुरू कर दिया। निर्माण सामग्री रस्ते में ही डलवा दी। ईंटे रेता आस पास में फैलने लगा। आस पास के लोगो को परेशानी तो होनी ही थी। लेकिन मैंने उनकी परेशानी की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम को जारी रखा। किसी पडोसी ने नगरपालिका में शिकायत कर दी। नगर पालिका का कर्मचारी आया और मेरा निर्माण कार्य रोकने लगा। लेकिन मैं कहाँ मानने वाला था, कारण यह था की मेरी एक बड़े नेता से जान पहचान थी। मैंने उसका फायदा उठाने के लिए तुरंत उस नेता को फ़ोन मिलाया और स्पीकर ऑन करते हुए कहा की देखो कोई सरकारी कर्मचारी मेरे मकान का काम रुकवाने आया है , कुछ करो। जिस पर मेरा फ़ोन काटे बिना उस नेता ने तुरंत चेयरमैन को फ़ोन मिलाया और कॉन्फ्रेंस पर ही बात करने लगा की यह मेरा आदमी है, इसका काम नहीं रुकना चाहिए। चेयरमैन ने सुना और पूछा कहाँ पर है और कौन कर्मचारी रोक रहा है। यह बात उक्त कर्मचारी भी सुन रहा था। वह बीच में ही बोल पड़ा सर मैं बोल रहा हूँ। तो चेयरमैन ने कहा सुनो कुछ चाय पानी लेकर काम होने दो। बस फिर क्या था , मैंने ५०० के दो नोट निकाले और उक्त कर्मचारी को दिए। वह चला गया।
अब क्या था धीरे धीरे मेरा मकान बन गया और मैंने अपने गेट के आगे की सीढ़ी को भी रास्ते की भूमि का लगभग ३ फुट बढ़ा दिया। क्योकि मैंने अपना मकान तो अपनी पूरी भूमि में सड़क से लगभग ३ फुट ऊँचा बनाया था, अब गाडी वेगहरा चढ़ाने के लिए स्लैप तो बनाना ही था। मकान पूर्ण हो गया। मुहूर्त में सभी रिश्तेदारों , मिलने जुलने वालों और उस नेता सहित चेयरमैन व् उस कर्मचारी को भी बुलाया था। सभी लोग बहुत खुश हुए और दावत व् बधाई देकर चले गए।
कुछ दिन बाद मेरे पडोसी ने भी मकान बनाया और उसने भी गेट के स्लैप को ३ फुट तक बढ़ा दिया। फिर सामने वाले ने मकान बनाया और उसने भी गेट के स्लैप को 3 फुट तक बढ़ा दिया। इसी प्रकार जो भी मकान बनते गये वह रास्ते में ही स्लैप बनाते चले गये। अब रास्ता तो 30 फुट के स्थान पर लगभग 22 फुट का रह गया। कुछ वर्ष बाद मेरे बेटे की शादी का मौका था। मेहमान लोग अपनी अपनी गाड़ियों से आने लगे। गाड़ियां तो रास्ते में ही खड़ी होनी थी। जिससे कालोनी में रहने वाले लोगों को और अन्य यहां आने जाने वालों को परेशानी तो होनी ही थी। कुछ लोग अनाप शनाप व बुरा भला भी कहने लगे। विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गयी। इसी बीच किसी ने बोल दिया कि लोग रास्ते की भूमि को भी अपने मकान में मिला लेते हैं, जिस कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। तभी पड़ोसी ने कह दिया सबसे पहले तो इन्होनें रिश्वत देकर अपने मकान को बिना नक्षा पास कराये और स्लैप को रास्ते में बढ़ाया था, जिसको देखादेखी ही बाकी लोगों ने भी यह कार्य किया है।
बस मेरे मन में ख्याल आ गया कि काश ! मैं अगर मकान बनाते समय ईमानदार होता और नियमानुसार कार्य करता तो आज यह बातें सुनने को तथा मेरे साथ साथ अन्य लोगों को भी यह परशानिया झेलने की नौबत नहीं आती।
-S. K. Chhabra
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