एक बहुत बड़ा सवाल है कि शान्ति कहाँ है????सरकार आंकड़े निकालती है कि गरीबी रेखा से नीचे के लोग 30% है 40% हैं पर अहम सवाल है कि शान्ति की रेखा से नीचे के लोग कितने हैं????,रोटी के भूखे ज्यादा है या शन्ति के भूखे ज्यादा हैं????हर व्यक्ति को रोटी मिले इसके लिए तो बहुत सी योजनाएं हैं परन्तु हर व्यक्ति को शान्ति मिले ,क्या इसके लिए भी कोई योजना बनी है????
पेट भरने मात्र से शान्ति मिल जाती तो आज भरे पेट वाले चैन की नींद सोते।पर केवल पेट भरना ही जीवन नही है,मन भी शान्ति से भरपूर हो यही सच्चा जीवन है।हम मन्दिर में जा कर भगवान से दो पल की शान्ति मांगते हैं।भगवान कहते हैं जो पहले दी थी वो कहाँ गई????हम कहते है वो तो खो गई।भगवान कहते है जो पहले दी थी वो खो गई तो क्या गारंटी है कि अब जो दूँगा वह नही खोएगी।
चीज को मांगने से अच्छा है उसे सम्भाल कर रखना
सम्भाल कर नही रखेंगे तो फिर-2 मांगनी पड़ेगी।आत्मा परमधाम से अपने साथ शान्ति ले कर आई थी।जैसे राजा के बच्चे के पास बेशुमार हीरे-जवाहरात होते हैं,ऐसे ही शान्ति के सागर की संतान हम आत्माओं के पास भी बेशुमार शान्ति थी।
शान्ति आत्मा की अपनी चीज है इस सत्य को भूल जाने के कारण आज हम शान्ति को भौतिक साधनों में खोज रहें हैं परन्तु उसके करीब जाने की बजाय और ही दूर होते जा रहे हैं।जब शान्ति नही मिलती तो दूसरों पर ऊँगली उठाते हैं कि यह व्यक्ति,यह परिस्तिथि मेरी अशांति का कारण है।पर असल में तो अशांति का कारण है हमारी
"विस्मृति"
REMEMBER
शान्ति आत्मा की अपनी चीज है इसलिय इसका अनुभव भी स्वयं के भीतर से ही किया जा सकता है।जैसे कस्तूरी मृग की नाभि में होती है पर यदि मृग की ही पहचान ना हो तो कस्तूरी मिलेगी कैसे????इसी प्रकार आत्मा की ही पहचान ना हो तो शान्ति तक पहुँच बनेगी कैसे???
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