हांजी, बहुत ही दिलचस्प बात है ये। हम सभी का एक लक्ष्य इस जीवन में धन कामना भी है। क्योकि ये कर्मक्षेत्र है, और बिना कर्म किये हम यहाँ रह नहीं सकते। और हम सभी इस जीवन में उन्नति को पाना चाहते हैं।
कमाल की बात ये है कि उन्नति बाहर तो मनुष्य कर रहा है, अर्थात अपने को उस विषय का सही ज्ञान देना और उस हिसाब से अपनी दिनचर्या बनाना , लेकिन फिर भी कही न कही असंतुष्टता है कि जितना चाहिए उतना उन्नति नहीं हो पा रही। कारण कि अपनी आत्मा का जो मौलिक गुण है उसे हम खो बैठे हैं।
जानना चाहते हैं उस गुण को? वह गुण है - पवित्रता।
पवित्रता ही सुख शांति की जननी हैयह एक लोक प्रसिद्द कहावत है।
सभी वेदो शास्त्रों में इसका उल्लेख है। किन्तु सभी मनुष्य इसे अपनाने के बारे में नहीं सोचते। लेकिन जिन्होंने भी इस पवित्रता को अपनाया है, उसके पास शांति, सुख, सन्तुष्टता, समृद्धि स्वतः ही आ जाती है। इनके पीछे भागना नहीं पड़ता है। क्योकि जहाँ पवित्रता है , वहां सभी प्राप्ति स्वतः ही हैं.
उदाहरण हम सबके सामने हमेशा से है, हम सब जानते हैं ये जो देवतायें, धर्मात्माएँ या महान आत्मायें, गुरु इत्यादि हैं, इनमे पवित्रता की महानता है, तभी सब मनुष्य इनकी भक्ति करते हैं। अगर हम और विस्तार में जाएँ तो, किसी देवता की मूर्ती की स्थापना करने से, कुछ ही समय में एक बड़े मंदिर का निर्माण हो जाता है। चाहे वो मंदिर किसी गांव में क्यों न हो।
वो मूर्ती आकर कुछ नहीं करती, उस देवता का मौलिक गुण - पवित्रता की शक्ति का प्रतीक है। जहाँ पवित्रता है वहां पर प्राप्तियां चाहे वो सुख हो, वैभव हो, भोजन हो या फिर धन हो, सभी स्वतः खिच कर आती हैं।
तो हमें भी अपने अंदर पवित्रता के गुण को धारण करना है जिससे सभी प्राप्तियां हमारे पास स्वतः ही आकर्षित हों , हमें उनके पीछे भागना न पड़े।
आप अपने विचार नीचे कमेंट में दे सकते हैं। आपका दिन शुभ हो।
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